"मेरी मोहब्बत"

-विवेक

तेरी दीद से दिल में एक आरज़ू बेदार हुई,

तेरी अदम मौजूदगी में भी तेरी बू बाकी रही।

तेरे लबों की मुस्कान में कोई तिलिस्म सा था,

हर हर्फ़ तेरा मेरे वास्ते दुआ की सूरत रहा।

न जानूं कि तेरा दिल किस अक्स पर धड़कता है,

मगर मेरा वजूद बस तेरी उल्फ़त में फ़ना होता है।

तेरी निगाहों में अपनी तसवीर तलाश करूँ,

या इसे महज़ एक वहम जानकर दरगुज़र करूँ?

मैं तेरी रहगुज़र को नज़्र-ए-गुल करने चला हूँ,

तू चाहे तो इनसे दामन बचा सकती है।

इश्क़ की लफ़्ज़ों से महरूम भी तर्जुमा होती है,

तू समझे या न समझे, ये तेरी मर्ज़ी की इनायत है

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