संग्रहित न कर सके तेरी छवि,
स्मृतियों में न बसा सके तेरी भाव-छवि।
स्पष्ट न कर सके मन की व्यथा,
सार न खोज सके तेरी कथा।
स्वयं को समझाने में असमर्थ रहे,
सजीव शब्दों में तुझे व्यक्त न कर सके।
स्नेह की भाषा भी मौन हो गई,
संपूर्ण हृदय में बस पीर रह गई।
संकेत भी दिए, पर तू समझ न सकी,
संदेश भी भेजे, पर हृदय तक न पहुँची।
साक्षी रहा समय इस मौन पीड़ा का,
संदिग्ध रहा हर भाव मेरी क्रीड़ा का।
संभव नहीं तुझे भूल पाना,
साकार नहीं तुझे समझा पाना।
सांसों में तू, पर कह न सके,
सदा के लिए अपना कर न सके।