"स्मृतियों के साए"

-विवेक

संग्रहित न कर सके तेरी छवि,

स्मृतियों में न बसा सके तेरी भाव-छवि।

स्पष्ट न कर सके मन की व्यथा,

सार न खोज सके तेरी कथा।

स्वयं को समझाने में असमर्थ रहे,

सजीव शब्दों में तुझे व्यक्त न कर सके।

स्नेह की भाषा भी मौन हो गई,

संपूर्ण हृदय में बस पीर रह गई।

संकेत भी दिए, पर तू समझ न सकी,

संदेश भी भेजे, पर हृदय तक न पहुँची।

साक्षी रहा समय इस मौन पीड़ा का,

संदिग्ध रहा हर भाव मेरी क्रीड़ा का।

संभव नहीं तुझे भूल पाना,

साकार नहीं तुझे समझा पाना।

सांसों में तू, पर कह न सके,

सदा के लिए अपना कर न सके।

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